झड़ियां सावन री
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बादल घुमड़ घुमड़ कर आवै,
इंदर मेघ मल्हार सुनावै,
मन में पवन झकोरा खावै
झड़ियां सावन री
पानी बरसे मूसलधार ,
जमी पर आई नई बहार
जोड़कर हाथ खड़्या नर नार
झड़ियां सावन री।
झरना झर झर बहता जावै,
नदियां कल कल राग सुनावै,
मनड़ो घणा हिलोरा खावै
झड़ियां सावन री।
दादुर मोर पपैया गावै,
कोयल मीठी तान सुनावै,
भंवरा कलियां पर मंडरावै
झड़िया सावन री
रिमझिम झीनी पड़ै फुंवार,
हिंडोला हींडै गजबण नार,
नारियां करती मंगलाचार
झड़ियां सावन री
लहरियो लहर लहर लहरावै,
मरवण गीत खुशी का गावै,
पिया की याद घणेरी आवै
झड़ियां सावन री।
सुरीली सावन की रुत आई
ठंडी पवन चलै पुरवाई।
सारथी मुऴक मुऴक कर गाई
झड़ियां सावन री।
कवि संत कुमार सारथि नवलगढ़