इश्क में अश्लील होना....
अजीब सा शीर्षक लगता है न *इश्क में अश्लील होना* फिर भी आज के इश्क की हकीकत भी तो यही है । हम जैसे ही इश्क करते हैं; हमारी सारी ऊर्जा अश्लीलता पर केंद्रित हो जाती है । इश्क की नियति अश्लीलता स्थिर कर दी जाती है तभी उसे मुकम्मल माना जाता है । जबकि अगर हम वास्तविक इश्क की दुनिया में जाते हैं तो महसूस होता है कि दरअसल *इश्क में अश्लील होना , इश्क से दूर होना है* क्योंकि इश्क और अश्लीलता दोनों दो मनोदशा है । एक में सात्विकता है, समर्पण है, त्याग की ललक है, पाने से अधिक सहेजने और देने की स्पर्धा है जबकि अश्लीलता में कामुकता , गिरावट और आतुरता है । *इसलिए इश्क में अश्लील होने से बेहतर है इश्क में लीन हो जाना ।*
आज का दौर लीन होने का नहीं बल्कि अश्लील होने का है । अश्लील न होने के कई मायने गढ़ लिए जाते है, ऐसा सोच लिया जाता है कि जो इश्क में अश्लील नहीं ,वो इश्क के काबिल नहीं । *इश्क में अश्लील होना मतलब इश्क का मुकम्मल होना माना जाता है ।*
आज अपने ढंग से इश्क की नई पहचान गढ़ ली गई है । आधुनिकता की उपज है इश्क में अश्लील होना । भले हम यह मान लें कि इश्क में अश्लील होना इश्क का मुकम्मल होना है किन्तु यथार्थ तो यह है कि इश्क में अश्लील होना मतलब इश्क में बेअदब और इश्क को मार देना है ।
जो इश्क में अश्लील हो जाता है वह इश्क की गहराइयों में नहीं उतर सकता है । वह बस किनारे गोते लगाकर ही डूबने का स्वांग रचता रहता है लेकिन मुकम्मल नहीं हो पाता । जिंदगी जीने के अपने मायने है, इश्क के भी अपने ही मायने है ।
आज इश्क करने वालों ने इश्क को इस कदर बेकदर कर दिया है कि उसकी सात्विकता और पवित्रता कलंकित हो चुकी है । इश्क कभी अश्लील नहीं होता । *वह एकांत का मोहताज नहीं होता, वह तो भरे सभा में करत है नैनन से ही बात वाला होता है ।* एकांत की तलाश पाशविकता की तलाश है , इश्क की नहीं । नैनों से ही संवाद हो जाता है । वहां बस देखने तक की चाह ही सबसे बड़ी अभिलाषा होती है, स्पर्श की कामना इश्क में अश्लील होने की गुंजाइश तलाशने लगती है और फिर वो इश्क में अश्लील हो जाते हैं ।
ओशो ने इसीलिए कहा था जिससे प्रेम करो उससे विवाह मत करो नहीं तो वो प्रेम धीरे धीरे अश्लीलता में दब जाता है । इश्क में अश्लील होने का निहितार्थ इश्क में कमजोर होना भी है । कुल के बाद भी हम यह मान सकते हैं भले आज आधुनिकता की व्याकुलता ने उम्र के पहले हमें इश्क को महसूस करा दिया है, भले ही उसे हमने अश्लील होकर पा लिया है किन्तु इश्क के संस्कार यह नहीं स्वीकारते । उनके लिए इश्क में अश्लील होना इश्क में मुकम्मल होना कभी नहीं है ।
आज हमारे आस पास का वातावरण और विज्ञान ने इश्क को अश्लील बनाने की पूरी पूरी कोशिश की है । मसलन हम अपने आस पास की दुनिया में देखें तो पाते हैं कि मोबाइल एक ऐसा ही जरिया बनकर उभरा है । इश्क में जो अभिशाप बनकर इश्क को अश्लील बनाने की फ़िराक़ में इस कदर रहता है कि जिन बातों को पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका आजीवन साथ रहकर भी एक दूसरे के प्रति नहीं जान पाते थे , वही आज महीने दो महीने में सब कुछ जान लेते है । शादी विवाह की पवित्रता कहीं न कहीं इश्क में अश्लील होने के भेंट चढ गई है ।
*विकास चन्द्र मिश्र*