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गुरु अनगढ़ पत्थर तराश बनाता है पारस-kawita

गुरु महिमा
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  अनगढ़ पत्थर तराश बनाता है पारस।
  अज्ञान तिमिर मेट करे जीवन उजागर।।

  ज्ञान चाक  पर  गढ़ता जाए  निरन्तर।
  शिष्य घट में भरे बुद्धि विवेक शुभकर।।

  ज्ञानाकाश      का       प्रखर    सूरज।
  गुरु  तो  होते    हैं  देव    से   बढकर।।

  रण    में   सारथि,  अरण्य  में    राम।
  कुरूक्षेत्र  में   देते   गुरु  गीता   ज्ञान।।

  मुश्किलों  में    भी    राह     दीखाता।
  गुरु   चरणों  की  महिमा  जग  गाता।।

  नंगी  आंखों  से  देवी  दरस   कराता।
  जिद्दी   नरेन  को  विवेकानंद  बनाता।।

  हृदय   कूप   में  भरता   है   प्रकाश।
  जग  जाने   गुरू  महिमा अपरम्पार।।
                             सुषमा सिंह
                   ‌             औरंगाबाद
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   ( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)

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2 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह,बहुत सुन्दर।
Sushma Singh said…
धन्यवाद भाई साब 🙏