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पितृपक्ष चलभाष-काव्योत्सव-kunj- aurangabad


+पितृपक्ष (पखवारा) चलभाष-काव्योत्सव
*ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवा च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।*
"प्राची साहित्य एवं अवधी शोध संस्थान"
9, पवनपुरी (आलमबाग), लखनऊ 
 संस्थापक-अध्यक्ष/संयोजक: 
डा.सुरेश प्रकाश शुक्ल(साहित्य- भूषण) 
 गोष्ठी संचालक:
श्री सम्पत्ति कुमार मिश्र "भ्रमर बैसवारी"-छंदकार
गुरुवार, 30 सितम्बर, 2021



अध्यक्षता-प्रो.वी.जी. गोस्वामी(पूर्व ला) 
मु.अ.-प्रो.बी.जी. द्विवेदी (चकेरी, कानपुर) 
वि.अ.-डा.अलका मिश्रा (डीएसएनपीजी,उन्नाव) 
वाणी वंदना-डा. सुरेश प्रकाश शुक्ल
डा. संगमलाल त्रिपाठी 'भंवर' (प्रतापगढ़) 
डा.शोभा वाजपेयी (वरिष्ठ कवयित्री) 
श्रीमती शोभा अवस्थी (हरदोई) 
श्री महेन्द्र भीष्म (वरिष्ठ साहित्यकार) 
श्री नरेश दीक्षित (संपादक, हनुमत कृपा पत्रिका) 
डा. प्रतिभा पाण्डेय (देवनगर, कानपुर) 
श्री कैलाशप्रकाश त्रिपाठी "पुंज" (वरिष्ठ कवि) 
श्री आनन्दमोहन द्विवेदी (राष्ट्रपति से सम्मानित शिक्षक, उन्नाव)
श्री राजेन्द्र शुक्ल "राज" (वरिष्ठ कवि) 
श्रीमती आशा अवस्थी (जबलपुर, म.प्र.) 
+डा.सुरेश प्रकाश शुक्ल (साहित्य भूषण)-
पितृपक्ष में नित करें, पुरखों का गुणगान।
नवमी तिथि को श्राद्ध दें, पुरखिनि को सम्मान।।
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जौनपुर से सात कि.मी. गाजीपुर मार्ग के,
दक्षिण धर्मापुर बजार, 'शिव मंदिर' हैं।
सुन्दर है भव्य लखै, लाखन श्रद्धालु आवैं,
दर्जा 'पर्यटक स्थल' मिलै, मांग हाजिर हैं।।
जौनपुर नरेश , कृष्णदत्त मनोयोग से,
उन्नीस सौ तैंतालिस का, बनावा मंदिर हैं।
काशी से मंगावा गा चमचमाती शिवलिंग,
दुइ बीघम मंदिर, औ पक्का सरोवर है।।
+श्री सम्पत्तिकुमार मिश्र ''भ्रमर बैसवारी"--
भरत ने सुना जब, पिता का स्वर्ग गमन, 
  बोले- मां हमारे पिता, काल से क्यों हारे हैं ।
बोली-कैकेई, नृप बिसराये थे मेरे वर, 
  मांगी तेरे लिये राज, राम वन सिधारे हैं।
अमर हुए हैं नृप, राज-काज देखो पुत्र, 
  करो पूर्ण स्वप्न मेरे, मन में जो धारे हैं।
गुस्से में भावुक हो, बोले-भरत,  मां नहीं तू, 
  दोष नहीं देते तुझे, भाग्य से ही हारे हैं।।
+डॉ सत्यदेव द्विवेदी "पथिक"-घर आंगन में हम खेल किये, सिर ऊपर थी ममता मयि छाया । उठते गिरते गिरते उठते, चलते पितु ने उंगली पकड़ाया ।। जिनके तप त्याग वितान तना, उनकी सुधि आज हृदै भर आया। यह मातु सु पूजनकी नवमी,हम श्राद्ध करें दिन याद दिलाया।।
+कर्नल प्रवीण त्रिपाठी(नोएडा)-मुश्किल  यदि सम्मुख आ जाये, तो क्या हम डर जायेंगे? बाधाएँ हो खड़ी सामने, तो क्या हम घबरायेंगे? संघर्षों में अडिग रहें तो, जीत हमारी निश्चित है, रची गयी विजयी गाथाएँ, तो क्या नहीं सुनायेंगे?
+श्री मयंक किशोर शुक्ल "मयंक"-करो वंदना सूर्योदय हुआ है। सुमनो का खिलना दिन तय हुआ है। मिटा केदूरी साथ हम चलेंगे,जागो जागो मयंक समय हुआ है।।
+श्रीमती गीता पांडेय "अपराजिता"(रायबरेली)-
गुरु गुरुवर का वार है, मिला है नवल सवेरा ।
फैला ज्ञान प्रकाश है, नहीं तम का है डेरा ।
वही हमारे  ईष्ट हैं, करते मन में बसेरा।
 सुखद लगे संसार है, सुखों का होता फेरा।
+श्री ज्ञानेन्द्र पाण्डेय (अवधी-मधुरस, अमेठी)-
मोहे न भावै मुरलिया सखी मोरु जिया जरावै हो। 
बजतै निगोड़ी बुलावैसखी मोरु निंदिया चुरावैहो।
साँझि-सकारे कै भान करैना रातु-दुपहरी भलु ध्यानु धरैना ठाढ़ि दुअरिया ननदिया सखी मोरु रहिया निहारै हो ।। मोहे न भावै------
हौ पियवा जू सेजिया पै सूतलु हिया हमारु होयि ऊथलु-पूथलु छोटका देवरा पुकारै सखी मोरु मतिया फिरावै हो ।। मोहे न भावै------
+सुमधुर काव्य सर्वश्री-पीयूष मिश्र "भइयाजी", राजेंद्र शुक्ल"राज", नीतूमिश्रा,संध्या त्रिपाठी।
+ संयोजक डा. सुरेश प्रकाश शुक्ल ने सभी मनीषियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
काव्यपाठ-आमंत्रण-(7651996416/ 9452741071),संपर्ककर कृतार्थ करें ।

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