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हाँ मैं छपासीय संस्कृति का आधुनिक साहित्यकार हूँ-sudhir-sriwastwa


आधुनिक साहित्यकार
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       हाँ मैं छपासीय संस्कृति का आधुनिक साहित्यकार हूँ।अब ये आप की कमी है कि अभी तक आप पुरातन युग में ही जी रहे  हैं।अरे भाई जागो,समय बदल गया है।नई संस्कृति जन्म ले चुकी है ,नीति अनीति भूल जाइए, रचना लिखिए, कुछ भी लिखिए।बस पटलों पर प्रतिभाग कीजिए,दस पन्द्रह पटलों पर नई पुरानी रचना भेजिए।रचना के स्तर की चिंता छोड़़िए, सम्मान पत्रों पर नजर रखिये।रचना कोई पढ़े या नहीं, कहीं छपे या नहीं, बस जुगाड़ और निगाह में सम्मान पत्र रखिये, कौन सा मरने के बाद आप देखने आने वाले हैं।
   सम्मान पत्रों को सोशल मीडिया में खूब प्रचारित करिए। बच्चे, परिवार, रिश्तेदारों मित्रों के बीच भौकाल बनेगा।मरने के बाद भी इन सबके बीच आपका यशोगान गूँजेगा।
      किसी के बहकावे में न आयें, जब तक जिंदा हैं ,पटलों पर ही सही जिंदा तो रहिए। मरने के साथ अपनी सृजनात्मकता डायरी कलम के साथ अंतिम संस्कार के लिए साथ लेकर जाइये।कौन जानता है आपके बाद आपके नाम लेखन का क्या क्या हो जाये?क्या पता आपके मरने के बाद आपके नाम को जिंदा रखने का जतनकर आप को इस मृत्यु लोक में भटकाने ही इंतजाम किया जाये।
जय लेखक, जय लेखनी, जय सम्मान पत्र।
✍सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा(उ.प्र.)
      8115285921
©मौलिक, स्वरचित,
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