"दीपक" का उपकार
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मैं,एक नन्हा सा दीपक हूं,
काम सभी के आता हूं ।
अंधकार हटाने के लिए,
रातों में जलाया जाता हूं ।
मेरे प्रकाश से चूहे जलते,
बिल्ली बहुत खिसयाती है ।
मच्छर सब छिपते फिरते हैं,
पर,निद्रा खुश हो जाती है ।।
मैं,मानव के साथ सदा,
परोपकार निभाता हूं ।
मैं,एक नन्हा सा दीपक हूं,
काम सभी के आता हूं ।।
मेरे जलने से मानव खुश,
खतरा से मुक्त हो जाता है ।
विषधारी जीवों को देख,
तत्काल होश में आता है ।।
वे-पीर,वे-वफा हवाऐं,
मुझे बुझाने आती हैं ।
मानव की बुद्धि भी तीव्र है,
दरवाजा-खिड़की लगाती है ।।
मैं प्रहरी बन जागता रहता,
सेवा से नहीं सकुचाता हूं,
मैं, एक नन्हा सा दीपक हूं,
काम सभी के आता हूं ।।
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रचना --लखन कछवाहा'स्नेही'