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अरविंद अकेला की कविता एक दीप जलाये-sahitykunj

कविता 
     एक दीप जलायें
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अपने मन के तम को दूर भगायें ,
प्रेम-सद्भाव का एक दीपक जलायें,
हर घर में करें माँ लक्ष्मी की पूजा, 
पर हर दिल में माँ सरस्वती को बैठायें ।

नहीं जले घर-परिवार में किसी का दिल, 
हर घर में प्यार की एक शमां जलायें ,
नहीं जले किसी घर की लक्ष्मी कोई, 
अपने घर की लक्ष्मी को खूब सजायें ।

सदा करें हर घर में बेटियों की इज्जत ,
दें अच्छे संस्कार उसे खूब पढायें ,
गाँव घर में जन्मे जब कोई बेटी ,
बजायें घर में थाली,एक दीप जलायें ।

घर की बेटियों को दें अच्छे संस्कार, 
दें उसे सद्विचार,अच्छे व्यवहार सिखायें, 
गाँव-समाज की बेटियों का करें सम्मान, 
दें उसे उचित मान,सदैव आगे बढ़ायें ।

जब भी आये दिवाली का दिन,
माँ लक्ष्मी की भक्ति में रम जायें,
घर को सजायें फूल माला से,
अपने घर को दीपक से जगमगायें ।
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         अरविन्द अकेला
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