धुन- तुम तो ठहरे परदेशी,साथ क्या निभाओगे ।
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स्वच्छता को अपनाओ,गंदगी मिटाना है ।
गंदगी बीमारी का,मात्र एक ठिकाना है ।।
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हैजा व मलेरिया को,यह ही जन्म देती है ।
गड्ठा सोखता बना के,इनसे मुक्ति पाना है ।।
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दूर अब न जायेंगे,शौच क्रिया के खातिर ।
सस्ता सुलभ शौचालय,अंगना में बनाना है ।।
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अब किसी भी रास्ते में,गंदगी न दिखलाये ।
पर्यावरण शुद्धिकरण,कार्यक्रम चलाना है ।।
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जालीदार गढ्डों में,गोबर कूड़ा को डाल कर ।
सुलभ-सस्ती कम्पोस्ट से,कृषि को बढ़ाना है ।।
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स्वच्छ पानी को इंसान,अब कोई न तरसेगा ।
हैंड पंप शासन का,अब,सब जगह लगाना है ।।
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प्रजा-जन भी खुश रहें,चिंता मुक्त शासन हो ।
सबको स्वच्छ-अभियान में, हाथ जो बंटाना है ।।
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गांव हो,या कोई शहर,शासन की योजना से ।
'स्नेही' नागरिकों को,अब जागरुक बनाना है ।।
****** इति******
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रचनाकार --लखन कछवाहा'स्नेही'
निर्माण की तिथि--वर्ष,14-10-2003