सजल
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सत्य समाधि देखकर ,झूठ इतराने लगा।
मंदिरों में पापाचार, धर्म डगमगाने लगा ।।
दहकने लगे चिनार घाटी कश्मीर में।
जमीं जो थी मेरी हक अपना जतलाने लगा।।
राम की महिमा निराली, जानती है दुनियां सारी।
जाने कौन सिरफिरा, राम पर उंगली उठाने लगा।।
वसुधैव कुटुंब का नारा बुलंद हुआ था जहां।
उसी पावन धरा पर, वैमनस्य पांव पसारने लगा।।
राजनीति के चुल्हे पर, स्वार्थ की रोटी सेंकने वालों।
देख तुम्हारी स्वार्थपरता, स्वर्ग में गांधी शरमाने लगा।।
ठुकरा दिए थे सिंहासन, राम गौतम महावीर।
उनके त्याग पराक्रम का सूरज जगमगाने लगा।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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