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रमाकांत सोनी की आधा दर्जन से अधिक रचनाये, जिन्हें आप बार -बार पढेंगे-sahitya


1
 *मातृभूमि* 

मातृभूमि जन्मभूमि, 
मात वीर वसुंधरा।
वंदन पावन धरती, 
कण-कण में साहस भरा। 

शौर्य पराक्रम शूरता, 
लाल तेरे दिखलाते। 
सरहद पर तैनात सेनानी, 
गीत वंदे मातरम गाते।

फौलादी जज्बों से गूंजे, 
स्वर जय मात भवानी। 
अमर सपूतों ने अर्पण की, 
वतन पे खुद जिंदगानी। 

 भाल पर तिलक माटी का, 
अरि दल से लोहा लेते। 
भारत माता जयकार लगा, 
रण में कौशल दिखला देते।

 हिमशिखर थार मरुस्थल, 
बाधाओं को पार करें। 
मस्त बहारें वतन परस्ती, 
लाल तेरे जयकार करें। 

राष्ट्र धारा में निशदिन बहते, 
राष्ट्र दीप जलाते हैं। 
देश भक्ति में झूमे नाचे, 
राष्ट्रगान गाते हैं। 

गांव-गांव और डगर डगर पर,
जोत सदा देशप्रेम की जले। 
जननी जन्मभूमि वंदन तेरा, 
मां लाल तेरे आंचल में पले।

2विषय दहेज प्रथा 

सोलह संस्कारों का वर्णन जो संस्कृति में पाया है 
विवाह पवित्र एवं प्रमुख है बुजुर्गों ने बतलाया है 

शादी की शाखा पर कोंपल मधुर स्नेहिल भाव धरे 
धवल हृदय से होकर जो उपहार हुए थे प्रेम भरे 

वर पक्ष की काक दृष्टि से व्यवस्था विकलांग हुई 
आहत होकर बुराई विषम विकृत विष राग हुई

काल शक्ति से कोंपल जहर का प्याला बन गई 
दायजा दहेज रूपी सामाजिक बुराई पनप गई

कन्या घर की ज्योति है मातपिता पर बोझ हुई
कठपुतली बना कन्या पक्ष वर पक्ष की धाक रही

कन्या दरवाजे से फिर बारातें लौटकर जाने लगी 
हिंदुस्तानी बेटी को ससुराल में चिंता सताने लगी 

बात-बात पर बहूयें धन हेतु प्रताड़ित होती थी 
सास ननद संपन्न घर में नववधूओं से लड़ती थी

मिट्टी का तेल छिड़कने की जो घटनाएं घटती थी 
सभ्य शिक्षित घर में नाना वधूएं फिर जलती थी

देश के हर चौराहे पर अब सुंदर वर बाजार सजे
पद आय अनुरूप मानवीय मूल्य बंदनवार सजे

स्वार्थ के लोभी अंधों को पैसों ने बहुत ललचाया 
रुपया नारियल कहने वाला गाड़ी तक चल आया 

बेटी बचाने की खातिर दहेज विरुद्ध लड़ना होगा 
देश के हर युवा को दहेज विरोधी प्रण करना होगा 

कन्या भ्रूण हत्या का मूल दहेज प्रथा मिटाना होगा 
समाज में जागृति लेकर युवाओं को आना होगा

दहेज विरोधी कानून का अक्षर पालन करना होगा
दहेज मांगने वालों का अब बहिष्कार करना होगा
3
*काली अंधियारी रात गई* 

मिटा अंधेरा आंखों का काली अंधियारी रात गई 
जो बीत गया सो बीत गया, रात गई सो बात गई

चकाचौंध के कायल थे जिनको हीरो बतलाते थे 
अब असलियत जान गए सतरंगी पर्दों पर आते थे

जो देश खातिर चले गए भारत मां के लाल अमर 
आशाओं का जलता दीप रण में दिखलाते जोहर

वही दमकते सितारे हैं वही सच्चे हमराज हमारे हैं 
ओज शौर्य उनकी वीरता हमको आंखों से प्यारे हैं

हृदय से वंदन करते उन भारती सपूत जवानों को 
उन जोशीले दीवानों को रणवीरों के गुणगानों को

4 जमीन
विधा कविता

जो जमीन से जुड़े रहे संस्कार उन्हीं में जिंदा है 
देशद्रोही गद्दारों से हमारी भारत माता शर्मिंदा है

हरी भरी हरियाली धरती बहती मधुर बयार यहां 
देशभक्ति दीप जले मन में जोशीले उद्गार जहां

यह जमी यह आसमा पर्वत नदियां लगे भावन 
अविरल बहती गंगधारा बलखाती सरिता पावन

सोना उगले देश की धरती वीर वसुंधरा भारतमाता 
हिमालय स्वाभिमान से शान से तिरंगा लहराता 

जिस जमीं पर जन्म लिया रगों में रक्त का नाता है 
जय जननी जय भारती सरहद पे सिपाही गाता है

वंदे मातरम वंदे मातरम गूंजे सभी फिजाओं में 
सरजमी मर मिटने वाले संदेशा देते हवाओं में

जमीं अपनी आसमां अपना वतन अपना है प्यारा 
होली दिवाली सब गले मिले बहे सद्भावों की धारा 

5
झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

रणवीर जुझारू भरी वसुंधरा सारा जहां मानता है 
युद्ध या अकाल हो झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

देशभक्ति भाव भरकर रणधीर समर में रहते हैं 
शूरवीर रणबांकुरे नित जय वंदे मातरम कहते हैं

मर मिटने का जज्बा ले सीमा पर सीना तानता है 
हिम्मत हौसला भरा झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

शेरों की शेखावाटी है रणबीरों का गुणगान जहां 
शहीद स्मारक साक्षी होता सपूतों का सम्मान यहां 

सेना में शामिल होना हर बच्चा मन में ठानता है 
धोरों की माटी झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

मातृभूमि शीश चढ़ाते अटल खड़े सेनानी वीर 
गोला बारूद भाषा में दुश्मन का देते सीना चीर 

रण में दिखलाते जौहर कीर्तिमान जग मानता है 
रणधीरों का जिला झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

जोशीले हूंकारों में भारतमाता जयकारों में 
तीर और तलवारों में वंदे मातरम नारों में 

त्याग तपस्या योग धर्म भामाशाह जहां दानता है 
शिक्षा में सिरमौर झुंझुनू झुकना नहीं जानता है

6 विश्वासघात
विधा कविता

छल कपट विश्वासघात का दुनिया में है बोलबाला 
हंसों का दाना काग चुग रहे छीने मुंह का निवाला 

स्वार्थ सिद्ध करने वाले बोल मधुर से बोल रहे
अपनापन अनमोल जता जहर हवा में घोल रहे

दगाबाजी धोखाधड़ी वंचना देशद्रोह और गद्दारी 
विश्वासघात के रूप कई अपघात और भ्रष्टाचारी

जालसाजी प्रपंच रचाते फेरबदल फर्जीवाड़ा 
चालाकी से कारस्तानी हड़पे हवेली और बाड़ा

अपने मतलब के रिश्ते नाते सारे व्यवहार निभाते 
धन के लोभी अपनों से भी विश्वासघात कर जाते 

शानो शौकत ऊंची रखते खुद को बादशाह बताते 
मन मैला खोटी नियत सदा औरों पर घात लगाते 

हश्र होता बुरा उनका अनुचित मार्ग जो अपनाते 
अंत समय में रह-रहकर बुरे कर्म बहुत सताते 

7
विषय मेरे गीत समय की धारा

मनमौजी सा गीत सुनाता, लेकर मन का इकतारा।
मेरे गीत समय की धारा, मेरे गीत समय की धारा।

मातृभूमि का वंदन करता, सुंदर सुमन माल ले। 
शब्दों के मोती सजाता, हाथों में पूजन थाल ले। 

माटी का तिलक करने को, उमड़ पड़ा शहर सारा।
मेरे गीत समय की धारा, मेरे गीत समय की धारा

अधरों पर मुस्कान सुहानी, मधुरता फैलाती है। 
अपनेपन का भाव जगा, हृदय में प्रेम जगाती है। 

पावन गंगा की बहती, भावन लगे  सुंदर किनारा। 
मेरे गीत समय की धारा, मेरे गीत समय की धारा।

राष्ट्रधारा के दीप जलाए, जन मन में उल्लास भरे।
दीप ज्ञान का लेकर सारे, घट घट में प्रकाश करे। 

अलख जगा देशभक्ति की, गौरव गान कहे न्यारा। 
मेरे गीत समय की धारा, मेरे गीत समय की धारा।

जोश जज्बा हौसलों की, भरता नई उड़ानें लेकर। 
सद्भाव फूल खिलाए, सबको स्नेह दुलार देकर। 

पथिक हौसला ले चलता, हिम्मत कभी नहीं हारा। 
मेरे गीत समय की धारा, मेरे गीत समय की धारा।

8  विधा दोहा
विषय दुर्लभ

दुर्लभ है मां बाप भी, 
मिलते बस एक बार। 
सेवा कर झोली भरो, 
करो बड़ों को प्यार।

मिले दुर्लभ औषधियां, 
बड़े जतन के बाद। 
असाध्य व्याधियां मिटे, 
हरे हृदय विषाद।

कलाकृति पुराणिक हो, 
बहुमूल्य समझ जान। 
दुनिया में दुर्लभ सभी, 
रचता वो भगवान।

अब तो दुर्लभ हो गया, 
अपनापन अनमोल। 
स्वार्थ में जग हो रहा, 
मतलब के मीठे बोल।

नर जीवन अनमोल है, 
दुर्लभ  गुणी जन जान। 
सदाचार अरु प्रेम से,
नर पाता पहचान।

रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू राजस्थान

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