Type Here to Get Search Results !

काल कुलटा मायाधर-रितेश रंजन-sahityakunj

वो काल कुलटा मायाधर थी,
खुद बच–बचाकर, छिप–छिपाकर आई थी।
वरन जो हिमालय पर परचम लहराया,
कहीं नीलगिरी से डरता था।

अरे! क्या पाक, क्या ड्रैगन
सबको चौखट पर रखता था।
कबीर बताए अक्षर ढाई,
तुमने ढाई फ्रंट का पाठ दिया।
डोकलाम से म्यांमार तक रत्ती रत्ती पाट दिया

अरे! हर चक्रव्यूह भेद, दुश्मन को छेद
मार धधकता शोला थे
कल के कुछ नए बिपिन से मिलने जा रहे थे 
कुछ रावत नए बना रहे थे

वही कही सर्पिनी सुरसा ने ,बीच राह में छेक़ लिया
इस बार शायद समझ न पाए,वरन राह नई सुझा जाते
खैर!जीवन क्या,आत्मा तक,भारत को ही अर्पण किया।

स्वरचित - रितेश रंजन

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.