मजदूर दिवस पर कविता -:
मजदूर
हाँ,हम हैं पढ़े-लिखे,
देश का एक मजदूर,
हम देश का बोझ उठाते हैं,
महल,अटारी बनाते है,
मिलते हैं जो पैसे हमें,
उससे रूखी-सुखी खाते हैं ।
करते हैं जी तोड़ मेहनत,
अपना पसीना बहाते हैं,
नहीं करते शिकायत किसी का,
नहीं हाथ फैलाते हैं,
रहते हैं खूद में मस्त,
हँसते,मुस्कुराते हैं।
करते हैं जब हम मजदूरी,
तब हम कमाते हैं,
नहीं करते मजदूरी जिसदिन,
उस दिन भूखे रह जाते हैं
देश को अपना श्रम देकर,
अपनी भूमिका निभाते हैं।
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अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27