कहानी
"रामेश्वरी का परिश्रम"
"धन की महिमा"
धन की महिमा का श्रेय जय मां लक्ष्मी जी को माना जाता है, आज के युग में धन का प्रचलन बहुत है धन के बिना आज के युग में जीना असंभव है क्योंकि आज के युग में धन से प्रत्येक वस्तु को खरीदा जाता है, धन का हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है परंतु आवश्यकता से अधिक धन है। तो इंसान को लालची बना देता है, धन जीवन का एक अमूल्य संपदा है। जिससे मनुष्य धन से वस्तुएं खरीद कर उपभोग करता है।
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किसी गांव में रामेश्वरी नाम की एक महिला थी। वह अपने दो बच्चों के साथ रहती थी। उसको इस गांव में 15 दिन हुए थे। उस गांव में काम की तलाश में साहूकार जमींदार से काम के लिए जाती है। परंतु उसको वहां से कोई मदद नहीं मिल पाती। वह पूरे दिन मेहनत की तलाश में पूरे गांव घूम आती है। परंतु उसको उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती है। शाम होते होते घर लौट आती है। उसके बच्चे कहते हैं । मां कुछ खाने को दो हमें भूख लगी है। रामेश्वरी अपनी झोपड़ी के अंदर जाती है मटके में थोड़े से चावल रखे थे उन्हें वह बनाती है। परंतु दुख की बात यह थी चावल आज के लिए ही थे। वह बहुत मायूस हो गई। अब वह सुबह अपने बच्चों को क्या खिलाएगी यह सोचते सोचते चावल बना लेती है। और अपने हिस्से के चावल बचाकर सुबह के लिए रख देती है बच्चों को चावल खिला कर सुला देती है। वह अपनी झोपड़ी में से निकलकर एक टक चंद्रमा को देखती रहती है। और मन ही मन सोचती है। की हे ईश्वर मेरे जीवन में आपने मेरे बच्चों के सर से पिता का साया छीन लिया और मैं अपने बच्चों के लिए पेट भरने के लिए कोई काम नहीं मिल रहा है। आखिर ईश्वर मैं करूं। अपने जीवन में। मैं जिससे की अपने बच्चों को पाल सकु। धीमे धीमे चंद्रमा बादल में छिप जाता है।
रामेश्वरी की आंखों से आंसुओं की धारा बहती रहती है। वह अपने बीते हुए समय का चिंतन मनन करती रहती है। चंद्रमा बादलों में छिप जाने के कारण अंधेरा सा छा गया था कुछ पल भर बाद उजाला आया। जब चंद्रमा बादल से हटा। अचानक से उसे एक दिव्य रोशनी दिखाई पढ़ती है। जिसमें से सफेद रंग के कपड़े पहने एक महापुरुष आते हैं। वह रामेश्वरी के पास आते हैं कहते हैं तुम परेशान मत हो। तुम्हारे सारे दुख
दूर हो जाएंगे अपने आप पर भरोसा और संयम रखो। जिंदगी के इस जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं आज दुख है कल सुख भी आएंगे।
रामेश्वरी ने महापुरुष से कहा मैं अपने जीवन को सफल बना तो लूंगी परंतु मेरे पास ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिससे मैं बच्चों का जीवन यापन करा सकूं। यहां प्रत्येक वस्तु के लिए धन की जरूरत पड़ती है। मैं मेहनत भी करना चाहती हूं। पर कोई मुझे काम देने के लिए तैयार नहीं है। महापुरुष ने कहा तुमने जो सुबह के लिए चावल बचा रखे हैं उन चावलों मैं यह एक चावल मिला देना। जिसके डालने से चावल खत्म नहीं होंगे। और तुम अपना जीवन यापन चला सकती हो।
रामेश्वरी वह चावल का दाना महापुरुष से लेकर अपनी झोपड़ी केअंदर जाती है। मटके में रखे चावल में रख देती है। जैसे ही वह झोपड़ी से बाहर आती है। महापुरुष वहां से चले जाते हैं। फिर से चंद्रमा बादलों में छिप जाता है। कुछ पल बाद फिर रोशनी आ जाती है।
रामेश्वरी मुस्कुराती है और झोपड़ी के अंदर चली जाती है। और इसी तरह रामेश्वरी की रात आंखों में ही कट जाती है सुबह होते ही वह देखती हैं।
उसका मिट्टी का मटका चावल से भरा है।
वह सोचती है यदि मैं इसको साहूकार को बेचती हूं तो काफी सारे सवाल करेंगे। हो सकता है मुझे चोर भी समझे।
इतने में उसको एक युक्ति सूझती है। क्यों ना यह आधे चावल की खेती कर लू । और जिससे मेहनत भी हो जाएगी एक समय बात मुझे धन की प्राप्ति भी हो जाएगी।
रामेश्वरी ने अपनी बनी झोपड़ी के आसपास की जगह में चावल बो दिए । और पूरे दिन उस काम में लगी रहती। और खाने में भी वह पानी में उबालकर चावल का ही सेवन कर लिया करती थी और अपने बच्चों को भी खिला दिया करती थी। लोगों ने रामेश्वरी को खूब ताने मारे कहां की यह बावली पागल हो गई है। बिन पानी के चावल भला लगते हैं। आसपास के गांव वाले रामेश्वरी को रोज भला बुरा कहकर चले जाते।
आजकल मौसम भी बे मौसम गिर रहा था।
मानो वह रामेश्वरी की मेहनत से खुश होकर गिर रहा हो। एक समय ऐसा आता है रामेश्वरी की चावलों की फसल पक कर तैयार हो गई थी। उसकी कठिन मेहनत से चावल की खेती अच्छी होती है। और आसपास के लोग भी अब उसकी सहायता कर रहे थे।
वह अपनी फसल को निकलवाने के लिए जमींदार से और साहूकारों से मदद लेती है। जिससे कि वह अपनी फसल को निकलवा सके।
अंततः रामेश्वरी की मेहनत सफल हुई चावल की फसल करके रामेश्वरी ने अपनी मेहनत का प्रमाण दिया। आसपास के लोग रामेश्वरी की खूब तारीफ करते हैं। और कहते हैं कि इन चावलों को तुम मंडी में लगा देना जिससे तुम्हें धन की प्राप्ति हो जाएगी और तुम अपना जीवन यापन अच्छे से कर पाओगे।
रामेश्वरी बहुत खुश थी।
सुंदरी अहिरवार.....