कविता
सुन लो बेटी एक अर्ज हमारी
सुन लो बेटी एक अर्ज हमारी
नहीं करना किसी कसाई से प्यार,
नहीं मिलेगा कभी प्यार उसका,
मिलेगा सदैव काँटों का हार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
नाम बदलकर आयेगा वह,
करेगा झुठे प्यार का इजहार,,
नहीं करेगा जल्द शादी तुमसे,
नहीं करेगा दिल से स्वीकार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
नहीं ले जायेगा अपने घर-द्वार,
नहीं करेगा तुम्हें अंगीकार,
रखेगा नहीं दिल का रिश्ता,
नहीं करेगा कभी सद्व्यवहार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
सच्चा लव नहीं करेगा तुमसे,
नहीं समझेगा अपना परिवार,
जिहादी सोच का वह प्रेमी,
करेगा दिल के टुकड़े हजार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
गर नहीं मानी बात उसकी,
देगा तुम्हें दुख-दर्द अपार,
कर देगा हश्र तेरी श्रद्धा जैसी,
देखेगा तुझे सारा संसार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
नहीं करता जग भरोसा उसपर,
नहीं करता कभी आदर-सत्कार,
भरोसे लायक नहीं रहा कभी,
समाज में नहीं है उसका आधार।
सुन लो बेटी एक अर्ज...।
रह जाना तुम आजीवन कुँवारी,
नहीं जाना किसी जालिम के द्वार,
रखना सदैव माँ-बाप की इज्जत,
बचा के रखना अपना संस्कार।
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अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर;पटना-27