अवधेश्वर अरुण को समर्पित रहा
अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन
मुजफ्फरपुर ,(अकेला न्यूज)।श्री नवयुवक समिति सभागार में नटवर साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित मासिक कवि सम्मेलन हिंदी और बज्जिका के वरीय कवि, साहित्यकार डॉ अवधेश्वर अरुण की स्मृति को समर्पित रहा। प्रथम सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्गार में साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कहा कि अरुण जी एक प्रिय छात्र,प्रिय श्रेष्ठ शिक्षक और पथ प्रदर्शक गुरु थे। एक भाषाशास्त्री और शिक्षाविद के रूप में वे सम्मानित रहे। साहित्य की समस्त विधाओं में सृष्टि लेखन के साथ ही उनका बज्जिका भाषा में लिखा रामायण महाकाव्य एक कालजई सृजन है। सहज, सरल और सादगी पूर्ण उनका व्यक्तित्व उनके कृतित्व में गंभीर और चिरंतन है।
मुख्य अतिथि डॉ देवव्रत अकेला ने कहा कि अरुण जी ने अपनी विद्वता को अपने शिष्यों और रचनाकारों के बीच हमेशा वितरित किया। इससे पहले विषय प्रस्तावना में डॉ विजय शंकर मिश्र ने संस्मरणों के माध्यम से डॉक्टर अवधेश्वर अरुण के व्यक्तित्व को उजागर करते हुए कहा कि अरुण बाबू ललित निबंधकार और आध्यात्मिक साधक थे। रणवीर अभिमन्यु ने कहा कि अरुण बाबू के अवदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने नटवर साहित्य का संपादन किया। नटवर साहित्य परिषद के संयोजक डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी ने कहा कि वह एक कुशल संपादक थे। उन्होंने कवि मगनीराम रचनावली का दायित्व पूर्ण संपादन किया।
कवि गोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ विजय शंकर मिश्र ने सबसे पहले अरुण बाबू की प्रसिद्ध रचना 'डरो नहीं अंगुलिमालों से नहीं बुद्ध को हरा सकेगा' का प्रभावशाली पाठ किया। संजय पंकज ने अपने गीत -'ओढ़ चदरिया चला कबीरा, उसका जीवन फागुन-सावन, रिमझिम बादल रंग अबीरा' सुनाकर जीवन की मस्ती और नश्वरता का दर्शन कराया। डॉ नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी ने - ' हालात हमारे भी सँवर क्यूं नहीं जाते , ये ख्वाब हकीकत में उतर क्यूं नहीं जाते ' सुनाकर भरपूर तालियां बटोरी। कवि रणवीर अभिमन्यु ने - ' नेक बन्दे की नेक थी नियति ' सुनाकर दाद बटोरी। शायर रामउचित पासवान ने - मस्त मदन रस पी पी भंवरा वौराया मधुमास में , इठलाती फूल कुसुम तीसी पर तितलियां मधुमास में ' सुनाकर भरपूर तालियां बटोरी। डॉ जगदीश शर्मा ने - ' जनानी का हो गया , सारे देशों में आ गया जमाना है , मेयर से डिप्टी मेयर तक शहर में जनानी को पद पर बैठाना है ',शायर डॉ सिब्बतुल्लाह हमीदि ने - ' गिर गये कितना दिखा देते है , फूस के घर जो जला देते हैं,ओम प्रकाश गुप्ता ने - ' आज वतन को खतरा है ,आस्तीन के सांपों से 'सुनाया कवि अंजनी कुमार पाठक ने ' बसंत के कई रंग हैं , ऋतु बसंत ने हमें यह सिखाया ' सुनाकर तालियां बटोरी। कवि अरुण कुमार तुलसी ने - ' अतीत के मर्म स्थल से ,वर्तमान के पटल पर ' सुनाया । उमेश राज ने - कैसे तुम बिन हम तो गुजारा करेंगे , कैसे तुम बिन जीवन संवारा करेंगे ' सुनाकर वाह वाही बटोरी। कवयित्री सविता राज ने - ' काश , जिंदगी परी कथा सदृश होती , किसी के नयन में अश्क न होते ' सुनाकर तालियां बटोरी। कवयित्री डॉ कुमारी अन्नु ने ' युगों - युगों की प्यास मेरी , बन गई अरदास मेरी ' सुनाकर तालियां बटोरी। कवि शशिरंजन वर्मा ने ' बातें किसी से दिल की किया नहीं जाये, एक पल भी सकून से भी जिया नहीं जाये ', कवि देवेन्द्र कुमार ने ' तब भी था अब भी हर क्षण ,रूप देह से ईतर हमारा प्रण ', मोहन कुमार सिंह ने ' बसंत का बयार है , हर तरफ प्यार है ', कवयित्री उषा किरण ने ' वो खाट कहां से लाऊं , जिस पर दादी लेटा करती थी ', वरिष्ठ कवि डॉ देवव्रत सिंह अकेला ने' कहां खो गये भगवान ,कहां सो गये भगवान ',अशोक भारती ने' तुम साथ चलोगी जहां - जहां , राहों में फूल बिछा देंगे ' सुनाकर अपनीअमिट छाप छोड़ी।
इसके अलावा कवि दीनबंधु आजाद , सुमन कुमार मिश्र , सत्येन्द्र कुमार सत्येन , यशपाल कुमार , संतोष कुमार सिंह , सहज कुमार , मुन्नी चौधरी , चिराग पोद्दार , महेश गुप्ता आदि कवियों की भी रचनाएं काफी सराही गई ।