कविता
हम पूरब वाले हैं
जनाब,हम पूरब वाले हैं,
पश्चिम वाले नहीं,
हम कुँवारी लडकियों से,
इश्क नहीं लड़ाते हैं,
नहीं उन्हें,
कभी जाल में फंसाते हैं,
मानते हैं जिन्हें बहन,
उन्हें नहीं सताते हैं।
हम तो पूरब वाले हैं,
हमें पूरब वाले हीं रहने दो,
कहता हूँ सच तो सच कहने दो,
हम किसी विशेष तिथि को
वेलेंटाइन डे नहीं मनाते हैं,
हम करते हैं जिन्हें बेहद प्यार,
उन्हें दिन विशेष,
प्यार नहीं जताते हैं।
हमारा प्यार,
दिन से शुरू होता है,
जो दोपहर होते हुए,
रात में खत्म हो जाता है,
हम करते हैं उसे,
बेहद प्यार,
पर उसे,
कभी नहीं बताते हैं।
हमारा प्यार ,
शुभ प्रभात से शुरू होता है,
जो चाय की चुश्की से गुजरते हुए,
अपनी ड्यूटी तक जाता है,
आते हैं जब शाम को,
आँखों की झप्पी तक जाता है,
रात में आलिंगन से गुजरते हुए,
मीठे सपने पर खत्म हो जाता है।
हम बाजारवाद के पोषक नहीं,
परिवारवाद के पोषक हैं,
हम जब प्यार में खुश होते हैं,
खीर,पुरी,मिठाई बनवाते हैं,
हम कैडवरी से काम नहीं चलाते हैं,
पुरी मिठाई दुकान उठा लाते हैं,
हम सिर्फ एक गुलाब नहीं लाते,
पुरा गुलदस्ता उठा लाते हैं।
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