पुस्तक
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जीने की हर कला सिखलाती,
पुस्तकों से बढ़कर दूजा ना साथी।
इतिहास पुराण पन्नों में समेटे,
आध्यात्मिकता का हर भाव लपेटे,
भूत भविष्य सब दिखलाती।
पुस्तकों से बढ़कर-------
पन्नों पर मोती बन बिखरी,
ज्ञानदीप बन अज्ञान मेटती,
त्रेता द्वापर हर युग दर्शाती।
पुस्तकों से बढ़कर--------
विनम्रता नम्रता जीवन उन्नति,
पुस्तक से श्रेष्ठ ना कोई संगति ,
दुःख सुख सबमें संबल बढाती।
पुस्तकों से बढ़कर------------
पुस्तकों में हर बात लिखी है,
ज्ञान विज्ञान अथाह सामग्री है,
हरेक हर्फ है अनमोल थाती।
पुस्तकों से बढ़कर-----------
किस्से कहानियां सब मिलते है,
बीते कल के प्रतिबिंब दिखते हैं,
धर्म कर्म राज काज विवेचती।
पुस्तकों से बढ़कर-----------
सुलभ ज्ञान की सर्वोच्च पद्धति,
महापुरुषों की गाथा कहती,
अंधेरे में राह दीखाती।
पुस्तकों से बढ़कर------------
अन्तरिक्ष के रहस्य सुलझाती,
भूगोल खगोल सब बतलाती,
ज्ञान पिपासुओ का ज्ञान बढ़ाती।
पुस्तकों से बढ़कर दूजा ना साथी।
सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
मजदूर
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मेहनत उनका अपना निवाला,
आलीशान बंग्ला उनका बनाया,
रेहड़ी ठेला सब वो लगाता,
फिर भी नून रोटी ही पाता।
ईट गारे में सने हाथ,
गांव शहर सबका विकास,
सड़क हों या चमचमाते माल,
सब इनके पसीने से तैयार।
ये रुके तो थम जाए विकास,
भाता है श्रमदान इन्हें,
पल भर ना आराम इन्हें,
सब इनके मेहनत का कमाल।
सपने नहीं इनके कोई ऊंचे,
बस हाथो को काम मिले,
थोड़े में संतुष्ट ऐ रहते,
धूप बारिश सब सह लेते।
जीवन की सुविधाओं से वंचित,
नहीं धनिकों जैसा कुछ संचित,
मेहनत से हुए हाथ वज्र जैसे,
रुखा सूखा खाना गुजारा जैसे तैसे।
वसुधा के आंचल पर सोते,
चांदनी की चादर ओढ़ लेते,
अक्षरज्ञान से विमुख किन्तु,
अनुभवों के पिटारे ये होते।
सुषमा सिंह
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बहुत सुन्दर।